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Gulam vansh important questions। गुलाम वंश से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न। परीक्षा में पूछे जाने वाले गुलाम वंश से संबंधित प्रश्न ।

1. दिल्ली सल्तनत में कुल कितने वंश हुए  ?   4  5  6  3 Ans - 5   दिल्ली सल्तनत शासनकाल में कुल 5 वर्ष हुए जो कर्म से निम्नलिखित हैं -  गुलाम वंश खिलजी वंश तुगलक वंश सैयद वंश लोदी वंश 2 . गुलाम वंश की स्थापना किसने की ?   कुतुबुद्दीन ऐबक मोहम्मद बिन तुगलक अलाउद्दीन खिलजी इल्तुतमिश   Ans - कुतुबुद्दीन ऐबक।  3 . गुलाम वंश की स्थापना किस सन में की गई ?  1205 1206 1210 1230 Ans - 1206 ईसवी।  कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 ईस्वी में गुलाम वंश की स्थापना की।  4 . कुतुबुद्दीन ऐबक किसका गुलाम था ?  महमूद गजनवी मोहम्मद गौरी मोहम्मद बिन कासिम बलबन Ans - मोहम्मद गौरी ।  मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान के साथ तराईन का प्रथम (1191) एवं द्वितीय युद्ध 1192 ईसवी में किया । प्रथम युद्ध में पराजित हुआ किंतु द्वितीय युद्ध में उसे विजय प्राप्त हुई और इसके पश्चात उस ने भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार किया। कुतुबुद्दीन ऐबक मोहम्मद गौरी का ही एक दास था।  5 . गुलाम वंश को और किस नाम से जाना जाता है ?   इलबारी वंश मामलुक वंश दा...

saiyad vansh। सैयद वंश का इतिहास

                       सैयद वंश(1414-1476)  1398 में दिल्ली सल्तनत पर तैमूर लंग के आक्रमण के पश्चात  तुगलक वंश कमजोर पड़ गया और वह किसी प्रकार से 1412 तक शासन करता रहा ।  तैमूर लंग के दिल्ली पर आक्रमण के समय दिल्ली का सुल्तान नसरुद्दीन महमूद भागकर गुजरात चला जाता है किंतु तैमूर लंग द्वारा उसका पीछा नहीं किया जाता क्योंकि तैमूर लंग का मुख्य उद्देश्य भारत में लूटपाट करना था ना कि शासन करना। तैमूर लंग ने इस्लाम के प्रचार को अपने आक्रमण का प्रमुख आधार बताया परंतु वास्तविकता में उसका उद्देश्य भारत में लूटपाट करना था।   इसके पश्चात दिल्ली का सुल्तान गुजरात से ही शासन करता रहा । वह स्वयं कभी दिल्ली वापस नहीं गया हालांकि तैमूर लंग 1399 ईस्वी तक समरकंद वापस चला गया किंतु उसे अभी यह भय था कि कहीं तैमूर लंग उस पर दोबारा आक्रमण न कर दे ।1398 से 1412 तक सुल्तान महमूद गुजरात से ही शासन करता रहा किंतु 1398 से 1412 तक तुगलक वंश का शासन नाम मात्र का शासन था। सुल्तान महमूद की अनुपस्थिति में दिल्ली में सुल्तान महमू...

Lodi vansh। लोदी वंश का इतिहास

                    लोदी वंश (1451-1526)  सैयद वंश  के पश्चात दिल्ली सल्तनत पर लोदी वंश का शासन  स्थापित  हुआ।  सैयद वंश के अंतिम शासक  आलम शाह  को हराकर  बहलोल लोदी  ने  1451 ईस्वी  में  लोदी वंश  की स्थापना की।  लोदी वंश के शासक : - 1 बहलोल लोदी (1451-1489 ई.)  2 सिकंदर लोदी (1489-1517 ई.)  3 इब्राहिम लोदी (1517-1526 ई.)  बहलोल लोदी बहलोल लोदी  ने आलम शाह को समाप्त नहीं किया क्योंकि आलम शाह एक  विलासी प्रवृत्ति  का व्यक्ति था और उससे उसे किसी भी प्रकार का कोई खतरा नहीं था।  इसके अतिरिक्त  आलम शाह  के पिता ने  बहलोल लोदी  को अपना  पुत्र  माना था इसलिए भी उसने आलम शाह के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट किया।  •  1451 ईस्वी में  बहलोल लोदी  ने दिल्ली में लोदी वंश की स्थापना की और बदायूं में बैठे  आलमशाह  को  पत्र  लिखा जिसमें उसने कहा कि :-  "आपके पिता ने मुझे पुत्र...

muhmmad-bin-tuglak ki bhulein। मुहम्मद-बिन-तुगलक के असफल प्रयोग।

मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा सत्तारोहण के तुरंत बाद अनेक नवीन प्रयोग किए गए जो बुरी तरह असफल रहे। इन प्रयोगों की सफलता या असफलता का कारण बताना संभव नहीं है । संभवतः यह प्रयोग उचित क्रियान्वयन के अभाव या अपने  समय से पूर्व होने के कारण असफल रहे होंगे। ( सांकेतिक मुद्रा वर्तमान में प्रचलित है और इसी का प्रचलन करने का प्रयास मोहम्मद बिन तुगलक ने 14 वीं शताब्दी में किया जो कि अपने समय से बहुत आगे था)  मोहम्मद - बिन - तुगलक के इन असफल प्रयोगों के कारण ही उसे इतिहास में पागल शासक भी कहा जाता है।  (1) सांकेतिक मुद्रा का प्रयोग - सांकेतिक मुद्रा मुद्रा को कहते हैं जिसका वास्तविक मान सोने एवं चांदी के सिक्कों के मान से कम होता है । जैसे सोने एवं चांदी के स्थान पर तांबे एवं कांस्य के सिक्कों का उपयोग करना सांकेतिक मुद्रा का प्रयोग करना कहलाता है।  भारतीय इतिहास में सर्वप्रथम सांकेतिक मुद्रा का प्रयोग मोहम्मद बिन तुगलक ने किया। 14 वीं शताब्दी में विश्व में चांदी की कमी हो गई इस कमी से निपटने के लिए मोहम्मद बिन तुगलक ने चांदी के स्थान पर अन्य निम्न कोटि के धातुओं का प्रयोग सिक्के ...

Tuglak vansh ka ithihas। तुगलक वंश का इतिहास। Tuglak vansh notes in hindi

अलाउद्दीन खिलजी ने अपने शासनकाल में अमीर तुर्क सरदारों की शक्ति को नष्ट कर दिया और उन्हें अपने अधीन कर लिया। इससे पूर्व बलबन ने भी अमीर तुर्क सरदारों की शक्ति को समाप्त करने का प्रयास किया था किंतु वह इसमें पूर्णतः सफल नहीं हो पाया था किंतु अलाउद्दीन खिलजी ने अमीर तुर्कों को पूर्णत: अपने अधीन कर लिया और इस प्रकार उसके शासनकाल में अमीर तुर्क सरदार फिर कोई विद्रोह नहीं कर सके और उसका शासनकाल एक शांति व्यवस्था वाला काल रहा किंतु अलाउद्दीन खिलजी द्वारा आमिर तुर्क सरदारों के प्रति अपनाई गई यह नीति दीर्घकालिक दृष्टि से हानिकारक सिद्ध हुई।  1316 में अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के पश्चात उसके सबसे करीबी कहे जाने वाले मलिक काफूर ने अलाउद्दीन खिलजी के अवयस्क बेटे को गद्दी पर बैठाया और उसके अन्य बेटों को बंदी बना लिया या उन्हें नेत्रहीन बना दिया।  महल का कोई भी व्यक्ति मलिक काफूर का विरोध नहीं कर सका क्योंकि कोई भी ऐसा दल अस्तित्व में नहीं था जो कि इतना शक्तिशाली हो जो इसका विरोध कर सकें इससे पूर्व अमीर तुर्क सरदारों के भय के कारण किसी भी शासक ने ऐसा करने की हिम्मत नहीं की थी और जिन शासक...

अकबर द्वारा विभिन्न वर्षो में किए गए कार्यों का क्रमानुसार विवरण।

अकबर के शासन काल से संबंधित विभिन्न परीक्षा में उपयोगी प्रश्नों की दृष्टि से महत्वपूर्ण बिंदु :- अकबर मध्यकालीन भारत मुगल काल का एक महत्वपूर्ण शासक था जिसे इतिहास में उसके द्वारा लड़े गए युद्ध एवं साम्राज्य विस्तार के लिए अपनाई के नीतियों के लिए जाना जाता है।   अकबर के शासन काल से संबंधित प्रमुख कार्यों जो उसने ने अपने शासनकाल के विभिन्न वर्षो में की उन कार्यों को वर्षों के बढ़ते हुए क्रम के आधार पर दर्शाया गया है :- • 1542 - 1542 ईसवी में अमरकोट कि हिंदू राजा वीरसाल के यहां अकबर का जन्म हुआ।  • 1556 - 1556 ईसवी में 13 वर्ष 4 माह की उम्र में पंजाब के कलानौर में अकबर का राज्याभिषेक हुआ।   • 1560 - अकबर के संरक्षक बैरम खान की 1560 में मक्का जाने के क्रम में मुबारक शाह द्वारा हत्या कर दी गई।  • 1562 - 1562 ईस्वी में अकबर ने दास प्रथा पर रोक लगा दी • 1563 - तीर्थ यात्रा कर समाप्त कर दिया।  • 1564 - अकबर ने गैर मुस्लिमों पर लगने वाली धार्मिक कर जजिया को समाप्त कर दिया।  • 1571 - 1571 ईसवी में आगरा के पास फतेहपुरसीकरी नामक नगर की स्थापना की औ...

गुलाम वंश । गुलाम वंश का इतिहास इन हिंदी । Gulam vansh ।। slave dynasty। Gulam vansh ka itihas। #upsc

मोहम्मद गोरी ने अपनी एक गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली का शासन संभालने का कार्यभार सौंपा । मोहम्मद गौरी की मृत्यु के पश्चात कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 ईसवी में स्वतंत्र रूप से दिल्ली पर शासन करने लगा। मोहम्मद गौरी के एक अन्य दास यलदूज जिसे मोहम्मद गौरी ने गजनी के तख्त पर बैठाया था उसने भी गजनी में शासन करते हुए दिल्ली पर भी अपना अधिकार स्थापित करना चाहता था इसलिए कुतुबुद्दीन ऐबक में  गजनी से  सभी प्रकार के संबंध समाप्त कर दिए और  स्वतंत्र रूप से दिल्ली का शासक बना। उसने गुलाम वंश की स्थापना की । गुलाम वंश का नामकरण - कुतुबुद्दीन ऐबक मोहम्मद गौरी का दास या गुलाम था इसीलिए इस वंश को गुलाम वंश के नाम से जाना जाता है । गुलाम वंश को इलबारी और मामलूक वंश के नाम से भी जाना जाता है । इस वंश में केवल 3 ही ऐसे शासक हुए जो कि किसी के गुलाम थे पहला कुतुबुद्दीन ऐबक जो मोहम्मद गौरी का दास था, दूसरा इल्तुतमिश जो कुतुबुद्दीन ऐबक का दास तथा दामाद था तथा तीसरा बलबन हुआ।  गुलाम वंश में कुल 11 शासक  हुई जिन्होंने 84 वर्षों तक शासन किया।  गुलाम वंश के प्रमुख शासक - •  ...

खिलजी वंश की स्थापना किसने की। khilji vansh Khilji vansh ki isthapana kisne ki। अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण व्यवस्था । खिलजी वंश का संस्थापक कौन था।

1286 ईस्वी में बलबन की मृत्यु के पश्चात दिल्ली में कुछ समय अव्यवस्था बनी रही। बलबन द्वारा शहजादा मोहम्मद को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया गया था जो मंगोलों के साथ युद्ध करते हुए मारा गया। बलबन के दूसरे पुत्र बुगरा खान ने दिल्ली के स्थान पर बंगाल और बिहार पर शासन करना पसंद किया। अंत में अमीर तुर्कों द्वारा बलबन के पोते को दिल्ली के तख्त पर बैठाया गया जो आयु में बहुत छोटा एवं अनुभवहीन था। आयु में छोटा एवं अनुभवहीन होने के कारण वह दिल्ली की स्थिति को संभाल नहीं सका।  इसके साथ ही कुतुबुद्दीन ऐबक के समय से उच्च पदों पर अमीर तुर्की सरदारों का एकाधिपत्य रहा जिससे अन्य मुस्लिम एवं अन्य धर्म के लोग में इसके प्रति नाराजगी व्याप्त थी और उसका कड़ा विरोध होना प्रारंभ हो गया।  गैर तुर्क मुस्लिमों में तुर्कों के प्रति काफी असंतोष हुआ तथा जिसके प्रतिफल के रूप में यह देखा गया कि खिलजी वंश ने गुलाम वंश को नष्ट कर खिलजी वंश की स्थापना की ।  खिलजी, मोहम्मद गौरी के समय भारत आए थे उन्हें कभी भी उच्च पद नहीं दिये गए खिलजी सामान्य सैनिकों की भाँति तुर्कों की सेना में शामिल हुआ करते थे।  ...

बलबन कौन था ? बलबन की लौह और रक्त की नीति को समझाइए ?

1240 ईस्वी में रजिया की मृत्यु के पश्चात बहरामशाह शासक बना। बहरामशाह ने 1240-1242 तक शासन किया तत्पश्चात महमूदशाह शासक बना। महमूद शाह के पश्चात नासिरुद्दीन महमूद शासक बना। रजिया के पश्चात बनने वाले प्रमुख शासक मुईजुद्दीन बहरामशाह  (1240-42)  अलाउद्दीन महमूद शाह  (1242-46)  नसीरूद्दीन महमूद (1246-1266)   इन सभी शासकों ने कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं किया ना ही किसी विशाल साम्राज्य की स्थापना की इन सभी के पश्चात एक प्रमुख शासक आया जिसे गयासुद्दीन बलबन के नाम से जाना जाता है।  >  बलबन 1246-1266 ई. तक इल्तुतमिश के छोटे बेटे नासिरुद्दीन महमूद का नायाब रहा।  > बलबन ने 20 साल तक नायाब के रूप में और 20 साल तक सुल्तान के रूप में शासन किया।  > बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नासिररुद्दीन महमूद से किया और शासन में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा ली।  > अमीर  तुर्क सरदार बलबन को पसंद नहीं करते थे इसलिए उन्होंने बलबन के विरुद्ध एक षड्यंत्र रचा और बलबन को उसके नायाब के पद से हटाकर इमादुद्दीन रेहान नाम के एक भारतीय मुसलमान को नायाब के पद पर...

कुतुबुद्दीन ऐबक। kutubuddin Ebak। गुलाम वंश का संस्थापक। # mppsc # bpsc#upsc

कुतुबुद्दीन ऐबक मोहम्मद गौरी का दास था जिसने 1206 ईस्वी में गुलाम वंश की स्थापना की। कुतुबुद्दीन ऐबक को गुलाम वंश के संस्थापक के रूप में जाना जाता है।  कुतुबुद्दीन ऐबक > कुतुबुद्दीन ऐबक तुर्क जनजाति से संबंधित था।  > कुतुबुद्दीन ऐबक को बचपन में निशापुर के एक काजी से खरीदा गया था।  > कुतुबुद्दीन ऐबक ने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया।  > कुतुबुद्दीन ऐबक ने गुलाम वंश की स्थापना की किंतु उसने कभी भी सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की।  > कुतुबुद्दीन ऐबक ने  " अढ़ाई दिन के झोपड़े "   का निर्माण करवाया जो पहले एक हिंदू मंदिर( विष्णु भगवान) हुआ करता था।  > कुतुबुद्दीन ऐबक ने क़ुतुबमीनार की नींव रखी किंतु पूरा नहीं करवा सका। बाद में इल्तुतमिश ने कतुबमीनार के कार्य को पूरा कराया।  > कुतुब मीनार का निर्माण कार्य कुतुबुद्दीन ऐबक ने सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर करवाया।  > कुतुबुद्दीन ऐबक लाखों का दान दिया करता था। उसकी दान देने की इस प्रवृत्ति के कारण  उसे लाखबख्श कहा जाता था।  > कुतुबुद्दीन...