muhmmad-bin-tuglak ki bhulein। मुहम्मद-बिन-तुगलक के असफल प्रयोग।


मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा सत्तारोहण के तुरंत बाद अनेक नवीन प्रयोग किए गए जो बुरी तरह असफल रहे। इन प्रयोगों की सफलता या असफलता का कारण बताना संभव नहीं है । संभवतः यह प्रयोग उचित क्रियान्वयन के अभाव या अपने  समय से पूर्व होने के कारण असफल रहे होंगे। ( सांकेतिक मुद्रा वर्तमान में प्रचलित है और इसी का प्रचलन करने का प्रयास मोहम्मद बिन तुगलक ने 14 वीं शताब्दी में किया जो कि अपने समय से बहुत आगे था) 

मोहम्मद - बिन - तुगलक के इन असफल प्रयोगों के कारण ही उसे इतिहास में पागल शासक भी कहा जाता है। 


(1) सांकेतिक मुद्रा का प्रयोग - सांकेतिक मुद्रा मुद्रा को कहते हैं जिसका वास्तविक मान सोने एवं चांदी के सिक्कों के मान से कम होता है । जैसे सोने एवं चांदी के स्थान पर तांबे एवं कांस्य के सिक्कों का उपयोग करना सांकेतिक मुद्रा का प्रयोग करना कहलाता है। 

भारतीय इतिहास में सर्वप्रथम सांकेतिक मुद्रा का प्रयोग मोहम्मद बिन तुगलक ने किया। 14 वीं शताब्दी में विश्व में चांदी की कमी हो गई इस कमी से निपटने के लिए मोहम्मद बिन तुगलक ने चांदी के स्थान पर अन्य निम्न कोटि के धातुओं का प्रयोग सिक्के बनवाने में किया। लोग बहुत समझदार थे और उन्होंने अपने सोने और चांदी के सिक्के बचा कर रखे और अपने रोजमर्रा के कार्य में सांकेतिक मुद्रा का प्रयोग करने लगे जिसके परिणाम स्वरूप बाजार जाली सिक्कों से भर गया और कुछ दिनों पश्चात ही उसे सांकेतिक मुद्रा वापस लेने पड़े और पुनः सोने और चांदी के सिक्के चलाने पड़े। 

इतिहासकारों के अनुसार मुहम्मद बिन तुगलक ने जब यह ऐलान किया की सांकेतिक मुद्रा को बदलकर सोने एवं चांदी की असली मुद्रा दी जाएगी तो उसके महल के बाहर नकली जाली सिक्कों का एक ढेर लग गया। 


(2) दिल्ली से देवगीर राजधानी परिवर्तन - शासक बनने के बाद मोहम्मद बिन तुगलक ने अपनी राजधानी दिल्ली से देवगीर स्थानांतरित करने की योजना बनाई। हालांकि मोहम्मद बिन तुगलक द्वारा लिया गया यह फैसला कोई तात्कालिक फैसला नहीं था बल्कि एक सोच विचारपूर्ण किया गया निर्णय था क्योंकि दिल्ली का शासक बनने से पूर्व मोहम्मद बिन तुगलक देवगीर का सूबेदार रह चुका था और वहां से भलीभांति परिचित था । उसने अपने साम्राज्य के लोगों को दिल्ली से देवगिरी जाने का आदेश दे दिया । रास्ते में राहगीरों के लिए सड़के , छाया , सराय आदि की व्यवस्था की किंतु फिर भी दिल्ली से दौलताबाद की दूरी बहुत अधिक ( लगभग 1500km  ) थी। जिस कारण यात्रियों को भारी कष्टों का सामना करना पड़ा। जिससे प्रजा में असंतोष व्याप्त हो गया। 

राजधानी परिवर्तन का प्रमुख उद्देश्य दक्षिण के राज्यों पर नियंत्रण स्थापित करना था क्योंकि उत्तर ( दिल्ली) में रहते हुए मोहम्मद बिन तुगलक के लिए यह संभव नहीं हो पा रहा था कि वह दक्षिण के राज्यों पर भी नियंत्रण कर सके। किंतु कुछ दिनों बाद ही उसे यह समझ आ गया कि जिस प्रकार दिल्ली में रहते हुए वे दक्षिण भारत पर नियंत्रण नहीं कर पा रहा उसी प्रकार देवगीर में रहते हुए वह दिल्ली पर नियंत्रण नहीं कर सकता क्योंकि उसके शासन के अभाव में दिल्ली में उसके अनेक विद्रोहियों ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित करना प्रारंभ कर दिया था। 



(3) खुरासन अभियान - खुरासन अभियान हिमालय की कुमाऊं पहाड़ियों में चलाया गया था इस अभियान में मोहम्मद बिन तुगलक को सफलता प्राप्त हुई किंतु उसने सफलता प्राप्त होने के बावजूद आगे बढ़ने का निर्णय लिया और सेना हिमालय के पहाड़ी क्षेत्र में आगे दूर तक निकल गई और अंत में वह फस गई । ऐसा कहा जाता है कि इस अभियान में 10,000 कि सेना में मात्र 10 व्यक्ति ही वापस लौटे थे। 



(4 ) कृषि सुधार नीति - मोहम्मद बिन तुगलक ने कृषि संबंधी सुधारों में विशेष रूचि दिखाएं इस हेतु उसने " दीवान-ए-अमीर-ए-कोही " नामक एक नया विभाग स्थापित किया। जिसके अंतर्गत संपूर्ण क्षेत्र कई प्रखंडों में बांट दिया गया और हर प्रखंड में एक अधिकारी की नियुक्ति की गई जिसका कार्य किसानों को ऋण प्रदान करना तथा कृषि को उन्नत बनाने हेतु किसानों को प्रेरित करना था। किंतु यह योजना भी असफल रही। 
इस योजना का असफल होने का प्रमुख कारण 2 कारण थे 
(1) इसके अधिकारियों का बेईमान निकलना तथा
(2)दूसरा किसानों द्वारा लिए गए ऋण को ना चुकाना ।

इससे पहले कि  मोहम्मद - बिन -  तुगलक इन किसानों और अधिकारियों  को दंड दे पाता उसकी मृत्यु हो गई और उसके बाद सुल्तान बनने वाले उसके चचेरे भाई फिरोजशाह तुगलक ने सभी किसानों का कर्ज माफ कर दिया। 

मोहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु पर बरनी लिखता है - 
" अंततः लोगों को उससे और उसे लोगों से मुक्ति मिल गई "


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