Babar in hindi। बाबर का इतिहास इन हिंदी

बाबर ने भारत में मुगल वंश की स्थापना की बाबर का पूरा नाम जहीरूउद्दीन मोहम्मद बाबर था। मुगल मंगोलों और तुर्क जनजातियों के सम्मिश्रण थे जिसे सम्मिलित रूप से मुगल कहा गया। मुगल का शाब्दिक अर्थ बहादुर होता है। 
बाबर के पिता उमर शेख मिर्जा तैमूर के वंशज थे। 

मुगल अपनी माता की ओर से मंगोल अर्थात चंगेज खान के वंशज थे तथा पिता की ओर से तैमूर लंग के वंशज थे किंतु मुगल अपने आप को मंगोल या मुगल कहलाना पसंद नहीं करते थे क्योंकि चंगेज खान मध्य एशिया एवं चीन में एक क्रूर शासक के रूप में प्रसिद्ध था मुगल स्वयं को तैमूर लंग का वंशज कहलाना  पसंद करते थे। 

बाबर के विषय में सामान्य जानकारी :-

• जन्म - 14 फरवरी 1983
• माता -  कुतलुगनिगार खानम
• पिता - उमर शेख मिर्जा
• उपाधि - मिर्जा , पादशाह , गाजी
• मृत्यु - 1530 ईसवी में

• आत्मकथा - बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-बाबरी (बाबरनामा) तुर्की भाषा में लिखी है।
 
• कब्र / मकबरा  - बाबर को सर्वप्रथम आगरा के आराम बाग में दफनाया गया किंतु बाद में उसे उसकी पत्नी मुबारक युसूफजाई द्वारा काबुल में दफनाया गया क्योंकि उसने यह इच्छा अपनी आत्मकथा बाबरनामा में व्यक्त की थी। 

बाबर के भारत आगमन के प्रमुख कारण :-

1. इस समय दिल्ली में अनेक परिवर्तन हो रहे थे जिसके कारण बाबर को भारत में आक्रमण करने का मौका मिला। 

जैसे -सिकंदर लोदी की मृत्यु , इब्राहिम लोदी के विरुद्ध किए जा रहे षड्यंत्र आदि।

2. पंजाब के शासक दौलत खाँ , मेवाड़ के शासक राणा सांगा एवं इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खाँ द्वारा बाबर को भारत आने का निमंत्रण दिया जाना। 
इन सभी का उद्देश्य बाबर को आमंत्रित कर इब्राहिम लोदी के शासन को समाप्त करना था किंतु किसी ने भी यह कल्पना नहीं की थी कि बाबर भारत में अपना साम्राज्य विस्तार करेगा। 

3. भारत की पश्चिमी सीमा प्रांत में उपस्थित प्रतिकूल परिस्थितियों ने भी बाबर को भारत में आक्रमण करने के लिए प्रोत्साहित किया। इस समय पश्चिमी सीमा प्रांत पर ऐसा कोई भी शक्तिशाली साम्राज्य शासन नहीं कर रहा था जो पश्चिम से होने वाले आक्रमणों से भारत की रक्षा कर सके। 

4. बाबर भी काबुल से प्राप्त कम आय से संतुष्ट नहीं था इसलिए अपनी आय बढ़ाने के लिए वह भारत पर आक्रमण की योजना बनाता है ।  प्रारंभ में उसका उद्देश्य केवल धन अर्जित करना था किंतु भारत के परिस्थितियों एवं यहां की  धन संपदा को देखकर उसने यही साम्राज्य विस्तार की  योजना बना ली। 

बाबर के आक्रमण के समय भारत में  विभिन्न प्रांतों में शासन करने वाले राज्य :-

•  बंगाल - नुसरत खाँ
• विजयनगर - कृष्णदेव राय 
• दिल्ली -  इब्राहिम लोदी 
• मेवाड़ - राणा सांगा 
• मालवा -  महमूदशाह द्वितीय


बाबर का भारत पर आक्रमण :-
1519 ईस्वी में बाबर ने भारत की सीमा में प्रवेश कर बाजौर और भेरा को जीत लिया। 
1519 ईस्वी में ही बाबर ने अपने साम्राज्य का विस्तार पेशावर तक कर लिया। 
1520 ईस्वी में बाबर ने बाजौर भेरा से लेकर पंजाब के सियालकोट तक अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया। 
1524 ईसवी में उसने लाहौर सहित पंजाब के अधिकांश भाग को जीतकर अपने साम्राज्य का अंग बना लिया। 

बाबर द्वारा भारत में लड़े गए प्रमुख युद्ध :-

(1) पानीपत का प्रथम युद्ध - 1526
(2) खानवा का युद्ध - 1527
(3) चंदेरी का युद्ध - 1528
(4) घाघरा का युद्ध - 1529


पानीपत का प्रथम युद्ध 
21 अप्रैल 1526 ईस्वी में बाबर और लोदी वंश के अंतिम शासक इब्राहिम लोदी के बीच पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ इस युद्ध में इब्राहिम लोदी पराजित हुआ और बाबर ने भारत  में मुगल वंश की स्थापना की। 

पानीपत के प्रथम युद्ध से संबंधित प्रमुख तथ्य :-
इस युद्ध में बाबर ने दिल्ली सल्तनत के अंतिम शासक इब्राहिम लोदी को पराजित कर भारत में मुगल वंश की स्थापना की। 

इस युद्ध में सर्वप्रथम तोपखाने का प्रयोग किया गया
। 
• तोप को सजाने में उसमानी विधि का प्रयोग किया गया। 

बाबर ने इस युद्ध में तुलगमा नीति का प्रयोग किया। 

बाबर की सेना में तोप के संचालन का प्रभारी उस्ताद अली कुली को तथा बंदूकधारियों के नेतृत्व करता के रूप में उस्ताद मुस्तफा को चुना गया। 

बाबर ने युद्ध की जीत का श्रेय अपने तीरंदाजों को दिया। 

इस युध्द में जीतने के पश्चात 1526 ईसवी में बाबर ने स्वयं को बादशाह घोषित किया और मुगल वंश की स्थापना की। 

युद्ध में जीत की खुशी में बाबर ने काबुल में चांदी के सिक्के बंटवाए । बाबर की उदारता के कारण लोगों ने उसे कलंदर की उपाधि प्रदान की। 

इस युद्ध में प्रथम बार भारत में तोपखाने का प्रयोग हुआ जिसके कारण बारूद व तोपखाने का प्रचलन बढ़ गया। 

कुषाण साम्राज्य के पश्चात पहली बार काबुल एवं गांधार पुनः भारत के अंग बने। 

खानवा का युद्ध ( मार्च 1527 ) 
1527 ईस्वी में बाबर और राणा सांगा के मध्य खानवा का युद्ध हुआ। इस युद्ध में बाबर का जीतना असंभव प्रतीत होता था यहां तक कि उसकी सेना ने भी हार मान ली थी किंतु उसने इसे एक धर्मयुद्ध का रूप देकर अपने सैनिकों में उत्साह भर दिया और अपनी छोटी सी सेना लेकर वह विजयी हो गया। 

पानीपत के प्रथम युद्ध के पश्चात बाबर और राणा सांगा के मध्य 1527 में खानवा का युद्ध हुआ। 

इस युद्ध में राणा सांगा की पराजय हुई। राणा सांगा उस समय के एक प्रतापी शासक कहलाते थे। 

राणा सांगा की पराजय के साथ ही यह निश्चित हो गया कि अब भारत पर लंबे समय तक मुगलों का शासन रहने वाला है। 
पानीपत के प्रथम युद्ध में विजय के पश्चात भारत में मुगल वंश कि नींव जरूर पड़ी किंतु खानवा के युद्ध में निश्चित रूप से उस नींव को और अधिक मजबूत कर दिया। 

खानवा के युद्ध को मुगल वंश की स्थापना को सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख युद्ध माना जाता है। 

राणा सांगा की पराजय के पश्चात भारत में अन्य कोई भी अधिक शक्तिशाली शासक नहीं बचा था जो बाबर का सामना कर सके। 

युद्ध में उसने जिहाद का नारा दिया और इस युद्ध को इस्लाम की रक्षा के लिए धर्म युद्ध का नाम दिया। 

युद्ध के पश्चात उसने " गाजी की उपाधि " धारण की। 

चंदेरी का युद्ध (1528) 

बाबर और राजपूत सरदार मेदनी राय के मध्य 1528 में चंदेरी का युद्ध हुआ। 

चंदेरी मालवा और बुंदेलखंड की सीमा पर स्थित एक व्यापारिक एवं राजनीतिक केंद्र था। 

इस युद्ध में बाबर ने राजपूत सरदार मेदनीराय को पराजित किया। 

युद्ध में जीतने के पश्चात बाबर ने मेदनी राय की दो पुत्रियों को अपने दो पुत्रों हुमायूं और कामरान को भेंट के रूप में दे दिया। 

इस युद्ध में भी उसने जिहाद का नारा दिया किंतु वास्तव में यह किसी भी प्रकार का धर्म युद्ध या धर्म की रक्षा के लिए युद्ध नहीं था बल्कि यह उसकी एक कूटनीतिक चाल थी। 

घाघरा का युद्ध (1529) 

• बाबर और अफगानी शासक महमूद लोदी के बीच सन् 1529 ईसवी में घाघरा का युद्ध हुआ। 

बाबर के जीवन काल का यह अंतिम युद्ध था क्योंकि इस युद्ध के पश्चात 1530 ईसवी में उसकी मृत्यु हो गई। 





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