saiyad vansh। सैयद वंश का इतिहास

                     सैयद वंश(1414-1476) 

1398
में दिल्ली सल्तनत पर तैमूर लंग के आक्रमण के पश्चात तुगलक वंश कमजोर पड़ गया और वह किसी प्रकार से 1412 तक शासन करता रहा । 

तैमूर लंग के दिल्ली पर आक्रमण के समय दिल्ली का सुल्तान नसरुद्दीन महमूद भागकर गुजरात चला जाता है किंतु तैमूर लंग द्वारा उसका पीछा नहीं किया जाता क्योंकि तैमूर लंग का मुख्य उद्देश्य भारत में लूटपाट करना था ना कि शासन करना। तैमूर लंग ने इस्लाम के प्रचार को अपने आक्रमण का प्रमुख आधार बताया परंतु वास्तविकता में उसका उद्देश्य भारत में लूटपाट करना था। 

 इसके पश्चात दिल्ली का सुल्तान गुजरात से ही शासन करता रहा । वह स्वयं कभी दिल्ली वापस नहीं गया हालांकि तैमूर लंग 1399 ईस्वी तक समरकंद वापस चला गया किंतु उसे अभी यह भय था कि कहीं तैमूर लंग उस पर दोबारा आक्रमण न कर दे ।1398 से 1412 तक सुल्तान महमूद गुजरात से ही शासन करता रहा किंतु 1398 से 1412 तक तुगलक वंश का शासन नाम मात्र का शासन था। सुल्तान महमूद की अनुपस्थिति में दिल्ली में सुल्तान महमूद का एक विश्वासपात्र दौलत खान नामक एक अफगान मुस्लिम शासन करता रहा जो सेना में उच्च पद पर कार्यरत था। 

1398 ने भारत में आक्रमण के समय खिज्र खान तैमूर लंग की सहायता की थी जिससे प्रसन्न होकर तैमूर लंग ने उसे लाहौर और दीपालपुर की सूबेदारी सौंप दी। सुल्तान महमूद की मृत्यु के पश्चात 1414 ईस्वी में खिज्र खां ने सैयद वंश की स्थापना की। 

सैयद वंश के प्रमुख शासक :-
 1 खिज्र खां (1414-1421 ई.) 
 2 मुबारकशाह (1421-1434 ई.) 
 3 मुहम्मद शाह (1434-1445 ई.) 
 4 आलमशाह (1445-1476 ई.) 


सैयद वंश से संबंधित प्रमुख जानकारियां - 

खिज्र खाँ
• संस्थापक - खिज्र खाँ

तुगलक वंश के अंतिम शासक नासिरुद्दीन महमूद तुगलक की मृत्यु के पश्चात 1412 ईस्वी में खिज्र खाँ ने सैयद वंश की स्थापना की। 

सैयद वंश दिल्ली पर शासन करने वाला प्रथम सिया मुस्लिम थे। इससे पूर्व बनने वाले सभी शासक सुन्नी मुस्लिम थे। 

खिज्र खाँ ने रैयत-ए-आला की उपाधि धारण की। 

सैयद स्वयं को पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के वंशज मानते थे। 

खिज्र खां ने तैमूर के पुत्र शाहरुख के प्रतिनिधि के रूप में शासन किया। 

 खिज्र खान ने सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की थी।

• 1421 में खिज्र खां की मृत्यु हो जाती है उसकी मृत्यु पर सभी के द्वारा काले रंग के वस्त्र धारण कर शोक प्रकट किया गया। 

मुबारक शाह
खिज्र खां के पश्चात उसका पुत्र मुबारक शाह गद्दी पर बैठा उसने सुल्तान की उपाधि धारण की और अपने नाम का खुतवा पढ़वाया। 

खिज्र खां के पुत्र मुबारक शाह ने सुल्तान की उपाधि धारण की । 

मुबारकशाह ने शाह की उपाधि धारण की। 

मुबारक शाह ने हिंदुओं के प्रति उदारता की नीति अपनाई। 

मुबारक शाह ने प्रसिद्ध इतिहासकार याहिया-बिन-अहमद-सरहिंदी को अपने राज्य में संरक्षण प्रदान किया। 

• मुबारक शाह का दरबारी इतिहासकार अहमद सरहिंदी था जिसने तारीख-ए-मुबारकशाही ( फारसी )नामक पुस्तक की रचना की। अहमद सरहदी ने इस पुस्तक में बताया है कि मुबारकशाह के शासनकाल का अधिकांश समय विद्रोहियों को दबाने में गया । उसका काल विद्रोहों एवं अशांति का काल रहा।

• मुबारक शाह इस वंश का सर्वाधिक प्रतापी शासक था। 

• मुबारक शाह ने  यमुना नदी के किनारे मुबारकाबाद  नामक शहर की स्थापना की ।

 मुहम्मद शाह 
मुबारक शाह के पश्चात उसका दत्तक पुत्र मुहम्मद शाह दिल्ली का सुल्तान बना। 

• मुहम्मद शाह का वास्तविक नाम मुहम्मद-बिन-फरीद-खाँ था। 

• मुहम्मद शाह ने वजीर सरवर-उल-मुल्क की सहायता से शासन किया। 

मुहम्मद शाह के शासनकाल में मालवा के शासक महमूद खिलजी ने आक्रमण किया। 

मुहम्मद शाह ने बहलोल लोदी को अपना पुत्र मानता था और उसे खान-ए-जहां की उपाधि प्रदान की।

 वास्तव में मुहम्मद शाह के शासन काल के समय से ही  सैयद वंश का अंत आरंभ हो गया और बहलोल लोदी अधिक शक्तिशाली होता गया आगे जाकर उसने लोदी वंश
की स्थापना की। 

आलम शाह
• मुहम्मद शाह की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र आलम शाह दिल्ली का सुल्तान बना। 

आलम शाह एक विलासी प्रवृत्ति का शासक था तथा शासन संचालन के कार्य हेतु अयोग्य था। 

आलम शाह का प्रमुख वजीर हमीद खाँ से विवाद हो गया जिसके परिणाम स्वरूप हमीद खाँ ने बहलोल लोदी को दिल्ली पर आक्रमण करने हेतु आमंत्रित किया। 

• बहलोल लोदी ने 1451 ईस्वी में दिल्ली पर आक्रमण कर लोदी वंश की स्थापना की । दिल्ली का सुल्तान आलम शाह भागकर बदायूं ( उत्तर प्रदेश) चला गया।

• अंतिम शासक - आलमशाह  

 
                    

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बलबन कौन था ? बलबन की लौह और रक्त की नीति को समझाइए ?

muhmmad-bin-tuglak ki bhulein। मुहम्मद-बिन-तुगलक के असफल प्रयोग।

मौर्याकाल की प्रशासनिक व्यवस्था। मौर्यकालीन प्रशासन। mauryakal ka prashasan। कौटिल्य का सप्तांग सिद्धांत