रजिया सुल्तान in hindi ।। दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाली प्रथम महिला एवं मुस्लिम शासिका। Rajiya sultan। # upsc#mppsc#bpsc#ssc

इल्तुतमिश की मृत्यु के पश्चात 1236 ईसवी में उसकी पुत्री रजिया गद्दी पर बैठी भारतीय इतिहास में यह पहली बार था कि किसी शासक की मृत्यु के पश्चात उसके पुत्रों के जीवित होते हुए भी पुत्री शासिका बनी हो । हालांकि इससे पहले भी प्राचीन मिस्र और ईरान में महिलाएं शासन कर चुकी थीं किंतु उन्होंने या तो संरक्षिका के रूप में शासन किया था या राजा की मृत्यु के पश्चात शासन किया किसी ने भी पुत्रों के होते हुए भी शासन नहीं किया। पुत्रों के होते हुए भी पुत्री को शासन पर बैठाना मध्यकालीन इतिहास की एक नई घटना थी। 

रजिया दिल्ली पर शासन करने वाली प्रथम महिला एवं प्रथम मुस्लिम शासिका थी इल्तुतमिश ने अपने पुत्रों के स्थान पर रजिया को शासन का कार्यभार सौंपा क्योंकि रजिया अपने भाइयों की तुलना में बहुत अधिक योग्य थी एवं शासन का प्रबंध भलीपूर्वक कर सकती थी। 

इल्तुतमिश की मृत्यु के पश्चात जब रजिया गद्दी पर बैठे तो अनेक लोगों ने इस बात का विरोध किया। कुछ इतिहासकारों का कहना है की रजिया गद्दी पर बैठे यह इच्छा इल्तुतमिश की नहीं थी बल्कि यह रजिया और उसके समर्थकों द्वारा बनाई गई एक कहानी है । इस बात का समर्थन इसलिए भी किया जा सकता है क्योंकि इल्तुतमिश के वजीर निजाम - उल - मुल्क ने भी रजिया के दावे का समर्थन नहीं किया वह भी रजिया के शासिका बनने के पक्ष में नहीं था । इन सब बातों के होते हुए भी रजिया आखिरकार शासिका बनी । शासिका बनने के बाद उसने प्रजा के हित में अनेक अच्छे कार्य किए वह अपनी प्रजा की देखभाल करती तथा प्रजा के पालन पोषण का कार्य करती थी। 

रजिया पुरुषों के समान वस्त्र पहनकर दरबार में आती और सभी का नेतृत्व करती रजिया के इस प्रकार दरबार में आने एवं शासन संबंधी महत्वपूर्ण निर्णय लेने को अनेक तुर्क मुसलमान पसंद नहीं करते थे। रजिया के पिता इल्तुतमिश द्वारा गठित 40 सरदारों का समूह जो चिहलगानी कहलाता था इसके सदस्य भी रजिया से ईर्ष्या करते थे क्योंकि एक तो रजिया स्त्री थी दूसरा वह तुर्क मुस्लिम के अतिरिक्त अन्य मुस्लिमों को भी शासन में उच्च पदों पर नियुक्त कर रही थी जो कि तुर्क मुस्लिम नहीं देख पा रहे थे और रजिया का विरोध करने लगे। 
रजिया का शासन काल राजतंत्र और तुर्क सरदारों के बीच संघर्ष का काल रहा वास्तव में रजिया की काल से ही तुर्क सरदार एवं राजतंत्र के मध्य संघर्ष स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है जो आगे भी जारी रहा और जिसने अमीर तुर्कों की शक्ति का भी एहसास कराया। 
रजिया को शासन से बाहर निकालने के लिए तथा उस पर दोषारोपण करने के लिए उस समय के कुछ इतिहासकारों ने उसे याकूत नामक एक अस्तबल प्रमुख से निकट संबंध रखने का दोषी भी बताया है किंतु संभवतः यह गलत है क्योंकि याकूत अस्तबल प्रमुख था और वह घोड़ों की देखरेख करता था और रजिया पर यह दोषारोपण करने वालों का कहना है कि वह रजिया को घोड़े पर बैठा था । किंतु यह कहना सही नहीं होगा क्योंकि रजिया घोड़े पर नहीं बल्कि हाथी पर बैठकर प्रजा के समक्ष आती थी। 


रजिया सुल्तान के व्यक्तित्व की प्रमुख बातें -
रजिया पुरुषों के समान वस्त्र पहनकर राज दरबार में आती थी। 
रजिया स्वयं युद्ध में सेना का नेतृत्व करती थी। 
रजिया को शिकार करने का भी शौक था और वह इस में निपुण थी। 
रजिया अपनी प्रजा से अत्यधिक प्रेम करती थी वह प्रजा पालक एवं एक महान योद्धा के रूप में इतिहास में जानी जाती है। 

रजिया सुल्तान के प्रमुख अभियान -
उसने राजपूतों को नियंत्रण में लाने के लिए रणथंबोर के विरुद्ध मुहिम चलाई। 
लाहौर और सरहिंद के विद्रोह को दबाने के लिए उसने अभियान किया और लाहौर के सूबेदार को अपने समक्ष घुटने टेकने पर विवश कर दिया। 

रजिया का अंत (1240 ई.)-
रजिया के शासनकाल में जब लाहौर एवं सरहिंद में विद्रोह हुआ तो रजिया स्वयं इन विद्रोह को दबाने के लिए गई रजिया ने लाहौर के विद्रोह को न केवल दबाया बल्कि वहां के सूबेदार को अपने समक्ष झुका दिया। सरहिंद विद्रोह को दबाने के पश्चात रजिया जब वापस आ रही थी तो उसकी सेना में आंतरिक बगावत हो गई और उसे भटिंडा के शासक अल्तूनिया ने कैद कर लिया ।  रजिया ने कूटनीतिक चाल चलते हुए अल्तूनिया से विवाह कर लिया और वह अल्तूनिया के साथ दिल्ली की ओर प्रस्थान करने लगी किंतु शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था और दिल्ली की ओर आते समय जंगल में डाकुओं द्वारा रजिया की हत्या कर दी गई। 

इस प्रकार रजिया ने 1236 - 1240 तक कुल 4 वर्ष शासन किया। योग्य एवं कुशल होते हुए भी रजिया शासन नहीं कर सकी। रजिया के अंत ने चहलगानी तुर्क अमीरों की शक्ति को साबित कर दिया और यह भी स्पष्ट हो गया कि अमीर तुर्कों के सहयोग के बिना दिल्ली सल्तनत पर शासन करना एक कठिन कार्य होगा रजिया के पश्चात आने वाले दिल्ली सल्तनत के अन्य शासकों के शासनकाल में भी हमें अमीर तुर्को की शक्ति का स्पष्ट स्वरूप दिखाई पड़ता है कोई भी शासक  अमीर तुर्कों के सहयोग  के बिना लंबे  समय तक  शासन नहीं कर सका। 

मिन्हाज सिराज के शब्दों में:-
" रजिया में सुल्तान होने के सभी गुण मौजूद थे वह विवेकमय, लोकोपकारी, अपने राज्य की हितैषी, न्याय करने वाली, प्रजा पालक और महान योद्धा थी किंतु यह गुण के किस काम आए जब वह एक स्त्री के रूप में पैदा हुई "

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