गोंडवाना रियासत mppsc mains(new syllabus)।Gondwana riyasat ।Gondwana dynasty in Hindi 2021
गोंड वंश का सर्वप्रथम उल्लेख रामनगर के संस्कृत अभिलेख में मिलता है जिसे गोंड वंश के शासक हृदयशाह द्वारा 1667 में बनवाया गया था । गौड़ वंश के बारे में जानकारी रामनगर के अभिलेख (संस्कृत भाषा में लिखित )से तथा अकबरनामा से प्राप्त होती है।गौड़ वंश में अनेक प्रतापी शासक हुए जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं :-
संग्राम शाह ,दलपत शाह ,रानी दुर्गावती, मधुकर शाह आदि।
यादवराव / यदुराय / योरदम
० शासनावधि:-1328-1440
० यादव राव ने गोंड वंश की स्थापना की जिसका उल्लेख रामनगर अभिलेख में मिलता है।
० यादवराव के पिता जोध सिंह पटेल थे।
० दमोह के शासक की पुत्री रत्नावली से यादवराव का विवाह हुआ।
० यदुराय के बाद खरजी शासक बना।
खरजी
० शासन अवधि:- 1440-1460
० इसने एक संगठित सेना का गठन किया तथा राज्य को समृद्धि के पथ पर अग्रसर किया।
० खरजी एक कुशल शासक के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।
गौरक्षक दास
० शासन अवधि:-1440-1480
सुखनदास
० शासन अवधि :-1480-1500
० इसने अपने पड़ोसी रियासतों के राजाओं के साथ मित्रवत संबंध स्थापित कर अपने राज्य का विस्तार व संचालन किया
अर्जुन दास
० शासन अवधि:-1500-1510
० अर्जुन दास के 2 पुत्र थे:-
(1) अमानदास /आम्हणदास
(2) जोगीदास
० शासक बनने के बाद अर्जुन दास को अपने बड़े बेटे आम्हणदास का विद्रोह झेलना पड़ा जिससे नाराज होकर उसने अपने छोटे बेटे जोगीदास को गोंड वंश का शासक नियुक्त किया।
० सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव अर्जुन दास के शासनकाल में ही गढ़ा आये थे।
० आम्हणदास ने अपने पिता अर्जुनदास की हत्या कर दी और स्वयं शासक बन गया इस प्रकार यह कहा जा सकता है की आम्हणदास ने शासन को सर्वाधिक प्राथमिकता दी । उसके समक्ष जो भी समस्या आई उसने रिश्तेदारी यह संबंधों का ध्यान भी ना रखते हुए केवल साम्राज्य विस्तार को अपना लक्ष्य बनाया। हालांकि यह कोई पहली बार नहीं था कि कोई शासक राजा बनने के लिए अपने पिता यह संबंधी की हत्या करे। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं जहां पुत्र ने पिता की हत्या करके या उसे कैद करके सिंहासन प्राप्त किया चाहे फिर वह किसी भी धर्म से संबंधित हो।
आम्हणदास/अमानदास/ संग्रामशाह
० अपने पिता की हत्या कर आम्हणदास या अमानदास गद्दी पर बैठा।
० आम्हणदास के शासक बनने की जानकारी हमें दमोह में स्थित सती लेखों से प्राप्त होती है। जिसके अनुसार यह 1510 से 1513 के बीच शासक बना।
० इसने शासक बनने के बाद महाराजा की उपाधि धारण की।
० आम्हणदासदास की पत्नियां:- पद्मावती, सुमति
पद्मावती से आम्हणदासदास को दो पुत्र दलपतशाह एवं चंद्रशाह की प्राप्ति हुई।
० अमर दास दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी के
समकालीन था।
इसने युद्ध में इब्राहिम लोदी की सहायता की थी जिससे प्रसन्न होकर इब्राहिम लोदी ने आम्हणदास को "संग्राम शाह" की उपाधि दी।
० संग्रामशाह गोंड साम्राज्य का अत्यधिक विस्तार किया तथा चहुँमुखी उन्नति की साथ ही इसने 52 गढ़ों की स्थापना की इसलिए इसे "बावनगढ़ाधिपति" के नाम से जाना जाता है।
संग्राम शाह द्वारा स्थापित 52 गढ़ों की जानकारी अकबरनामा से प्राप्त होती है।
कुछ प्रमुख गढ़:- सिंगौरगढ़, गिनौरगढ़ आदि।
० इसने अपने पुत्र दलपत शाह का विवाह चंदेल राजकुमारी दुर्गावती से कराया चंदेल वंश का संबंध किसी गोंड वंश से जुड़ना एक ऐसी घटना थी जिससे यह पता चलता है कि गोंड वंश काफी शक्तिशाली था तथा राजपूतों की स्थिति धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही थी।
दलपतशाह
० दलपत शाह का विवाह चंदेल राजकुमारी दुर्गावती से होता है।
० दलपत शाह की असमय मृत्यु हो जाने के कारण उनकी पत्नी दुर्गावती उनके अल्प वयस्क पुत्र वीरनारायण की संरक्षिका के रूप में शासन का कार्यभार संभालती हैं।
०
रानी दुर्गावती
० रानी दुर्गावती का जन्म 1524 में कालिंजर के राजा कीर्तिवर्मन या कीर्तिसिंह के यहां हुआ।
( इनके पिता के रूप में कहीं-कहीं सालवाहन का भी उल्लेख मिलता है)
० इनका विवाह गोंड राजा दलपत शाह के साथ हुआ।
० अल्पवयस्क पुत्र वीर नारायण की संरक्षिका के रूप में इन्होंने शासन किया।
० रानी दुर्गावती एक योग्य एवं कुशल महिला थीं।
इन्होंने अपनी वीरता और योग्यता से अपने राज्य का बहुत अधिक विस्तार किया।
० रानी दुर्गावती शिकार करने में कुशल थी।
० अधार सिंह इनके सेनापति थे जो बहुत ही कुशल थे।
० रानी दुर्गावती के काल को "गोंडवाना रियासत के स्वर्ण युग" के नाम से जाना जाता है।
रानी दुर्गावती के प्रमुख कार्य-
•शासन व्यवस्था- रानी दुर्गावती द्वारा एक कुशल सेना का गठन किया गया रानी स्वयं शिकार करने में माहिर थी साथ ही उन्होंने अफ़गानों को पराजित कर अनेक अफगान सैनिक अपनी सेना में भर्ती किए तथा सेना का पुनर्गठन एवं नियोजन किया।
•राज्य की संपन्नता- रानी दुर्गावती के शासनकाल में प्राप्त स्वर्ण मुद्राओं से ज्ञात होता है कि कर स्वर्ण मुद्राओं के रूप में दिया जाता रहा होगा जिससे राज्य के संपन्नता का बोध होता है। साथ ही मुगलों द्वारा आक्रमण किए जाने पर अत्यधिक धन-संपदा लूट कर ले जाई गई थी इससे भी राज्य की संपन्नता का बोध होता है।
•प्रजा हितैषी एवं प्रजा प्रेमी- रानी दुर्गावती अपनी प्रजा से एक पुत्र की भांति प्रेम करती थी जिस प्रकार माता पिता को अपनी संतान के चिंता होती है उसी प्रकार रानी प्रजा के प्रत्येक व्यक्ति एवं उनकी आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखती थी तथा हमेशा न्याय करती थीं।
•निर्माण कार्य- रानी दुर्गावती ने अपनी राज्य में अनेक निर्माण कार्य करवाएं उन्होंने घाटो तालाबों बावरियों मंदिरों का निर्माण करवाया इन्होंने अपने मंत्री अधारसिंह के नाम पर अधारताल तथा अपनी सेविका के नाम पर रानीताल का निर्माण करवाया कहा जाता है कि इन्होंने जबलपुर में अनेक तालाबों का भी निर्माण करवाया।
रानीदुर्गावती के काल में होने वाले प्रमुख आक्रमण:-
~अफगानों का आक्रमण
इनके शासनकाल में अफ़गानों का आक्रमण हुआ जिन्हें पराजित करके इन्होंने उन्हें अपनी सेना में शामिल किया तथा सेना को एक संगठित स्वरूप प्रदान किया।
~मालवा के शासक बाज बहादुर का आक्रमण
मालवा के शासक बाज बहादुर ने भी दुर्गावती पर आक्रमण किया किंतु वह पराजित हुआ और पराजित होने के बाद उसकी बहुत अधिक निंदा की भी हुई । उसने एक नारी को असहाय समझकर उससे युद्ध करने की नीति अपनाई और साथ ही वह पराजित भी हो गया।
~मुगलों का आक्रमण
इन सभी आक्रमणों में सबसे प्रमुख था मुगल शासक अकबर का आक्रमण जिसकी सेना आसफ खाँ के नेतृत्व में आक्रमण किया।
युद्ध से पूर्व अकबर ने रानी दुर्गावती के समक्ष एक शर्त रखी कि यदि वे अपना सफेद हाथी सरमन और अपने सेनापति अधार सिंह को उसे सौंप दे तो वह युद्ध नहीं करेगा और दोनों राज्यों के बीच समझौता हो जाएगा। किंतु रानी ने ऐसा करने से इंकार कर दिया उन्होंने कहा की संधि करके अपमान पूर्वक जीने से अच्छा यह सम्मान पूर्वक मरना है।
मुगल सेना प्रमुख आसफ खाँ और दुर्गावती के बीच नरई का युद्ध हुआ। नरई वास्तव में एक नाला था जो एक सँकरा स्थान था रानी दुर्गावती ने एक योजना के तहत नरई में युद्ध करना सुनिश्चित किया जिसमें उन्होंने योजना बनाई की मुगलों की सेना को नरेश के दोनों और बांट दिया जाएगा जिससे से ना करो छोटा हो जाएगा और युद्ध में आसानी होगी किंतु दुर्भाग्यवश उसी दिन भारी वर्षा के कारण नाले में बाढ़ आ गई और विपरीत परिस्थितियों के कारण रानी दुर्गावती की पराजय हुई । जब उन्होंने देखा की वे चारों ओर से गिर चुकीं हैं और उनका बच पाना संभव नहीं है तो उन्होंने स्वयं अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।
दुर्गावती की मृत्यु के पश्चात उनका पुत्र वीर नारायण मुगलों से बचते हुए चौरागढ़ के किले में जा पहुंचा जहां मुगल सेना ने पहुंच कर उसकी हत्या कर दी गई। जिसके बाद चौरागढ़ की सभी महिलाओं में भारतीयों की गौरवशाली परंपरा का अनुसरण करते हुए जौहर कर लिया जिसे "चौरागढ़ के जौहर" के नाम से जाना जाता है।
मुगल बहुत अधिक मात्रा में गोंडवाना रियासत से धन- संपत्ति लूट कर ले गए तथा चंद्रशाह को अपने अधीन कर राज्य का कार्यभार सौंप गए।
चंद्रशाह
० चंद्रशाह संग्राम शाह के छोटे बेटे थे। जिन्हें मुगलों ने राज्य का कार्यभार सौंपा।
चंद्रशाह के बाद बनने वाले अन्य शासक :-
मधुकरशाह
प्रेमशाह
ह्रदयशाह
गोंडवाना रियासत में 1857 की क्रांति
गोंडवाना रियासत में 1857 की क्रांति के समय शंकरशाह और रघुनाथ शाह ने अंग्रेजों की हड़प नीति का विरोध करते हुए भाग लिया उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध योजना बनाई और योजना का क्रियान्वयन करना सुनिश्चित किया । जबलपुर में अंग्रेजों की 52वीं रेजीमेंट का अधिकारी क्लार्क था । जब क्लार्क को इस बात का पता चला कि शंकरशाह व रघुनाथशाह द्वारा कोई योजना बनाई जा रही है तो उसने भद्दासिंह नाम के एक व्यक्ति को वेश बदलकर वहां जाने और योजना का पता लगाने के लिए भेजा भद्दा सिंह साधु का रूप धारण करके वहां जाता है और समस्त योजना पता करके क्लार्क के पास सूचना पहुंचाता है । जानकारी प्राप्त होने के पश्चात क्लार्क ने शंकर शाह और रघुनाथ शाह पर विप्लव का आरोप लगाकर उन्हें सजा सुनाई तथा सजा के तौर पर 18 सितंबर 1857 को शंकरशाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह को तोप के आगे बांधकर उड़ा दिया गया । इस क्रूरता को देखकर सभी का खून खौल उठा। उनकी रानियों के द्वारा उनका शीशों को ले जाकर शंकर शाह एवम् रघुनाथशाह का अंतिम संस्कार किया गया। इस घटना से क्रोधित रामगढ़ की रानी अवंती बाई ने अपने बांधवों की मृत्यु का बदला लेने के लिए अंग्रेजों से लोहा लिया।
इस प्रकार मध्य प्रदेश की गोंडवाना रियासत में 1857 की क्रांति में शंकरशाह, रघुनाथशाह और रानी अवंती बाई ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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