विवाह के प्रकार । विवाह की पद्धतियां mppsc mains। हिंदू ,मुस्लिम, ईसाईयों में प्रचलित विवाह के प्रकार। mpgk

• हिंदू विवाह के परंपरागत प्रकार :- प्राचीन काल में विभिन्न स्मृतिकारों में हिंदू विवाह के अलग-अलग प्रकार बताए हैं।

• मानव गृहसूत्र के अनुसार :- मानव गृहसूत्र में दो प्रकार के विवाह का उल्लेख किया गया है - (1)ब्रह्म विवाह (2) शौलक विवाह

वशिष्ठ ऋषि द्वारा छह प्रकार के विवाहों को मान्यता दी गई है। प्राचीन भारत में कानून की प्रथम पुस्तक माने जाने वाले मनुस्मृति की रचना करने वाले मनु ने हिंदू विवाह के 8 प्रकारों का उल्लेख किया है विवाह के यह आठ प्रकार इस प्रकार हैं :-
(1) ब्रह्म विवाह - याज्ञवल्क्य के अनुसार जब कन्या का पिता सच्चरित्र एवं गुणवान वर का चयन कर अपनी सामर्थ्य अनुसार अलंकारों से सुशोभित कर कन्यादान करता है ,तो इस प्रकार का विवाह ब्रह्म विवाह कहलाता है यह सबसे उच्च श्रेणी का विवाह माना गया है।

(2) दैव विवाह - प्राचीन काल में यज्ञ का प्रचलन हुआ करता था यज्ञ करवाने वाले को पुरोहित कहते थे। जब कन्या के पिता द्वारा पुरोहित से कन्या का विवाह करा दिया जाता था तो इस प्रकार का विवाह दैव विवाह कि  श्रेणी में आता था।

(3) आर्ष विवाह - यहां आर्ष शब्द का संबंध ऋषि से है जब किसी ऋषि द्वारा कन्या के पिता को गाय और बैल का एक जोड़ा दान दिया जाता था तब यह समझा जाता था की ऋषि कन्या से विवाह करने का इच्छुक है तब माता-पिता द्वारा विधि पूर्वक कन्या का विवाह ऋषि से कर दिया जाता था।

(4) प्रजापात्य विवाह  -  याज्ञवल्क्य के अनुसार कन्या का पिता कन्या का दान करते समय जब वर-वधू को आशीर्वाद देता है की " तुम दोनों साथ रहकर आजीवन धर्म का पालन करो "तो इस प्रकार के विवाह को प्रजापत्य विवाह कहा जाता है।

(5)असुर विवाह - इस प्रकार के विवाह में वधूमूल्य  लिया जाता है अर्थात कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष से कन्या का विवाह करने हेतु कुछ धन लिया जाता है । यह विवाह निम्न कोटि के विवाह की श्रेणी में आता है ।इस प्रकार का विवाह असुर विवाह चलाता है। यह दहेज के विपरीत प्रथा है । जनजाति में इसे दापा प्रथा कहते हैं।

(6) गांधर्व विवाह - गंधर्व विवाह की तुलना वर्तमान समय के प्रेम विवाह से की जा सकती है जब दो प्रेमियों द्वारा अभिभावक की अनुपस्थिति में आपस में विवाह किया जाता है तो इस प्रकार के विवाह को गंधर्व विवाह कहा जाता है। प्राचीन काल में इस प्रकार का विवाह गांधर्वों द्वारा किया जाता था इसीलिए इस विवाह को गांधर्व विवाह कहते हैं।

(7) राक्षस विवाह - युद्ध में कन्या का अपहरण करके किया जाने वाला विवाह राक्षस विवाह कहलाता था इस प्रकार के विवाह का प्रचलन युद्ध के समय हुआ करता था वर्तमान समय में इस प्रकार के विवाह की अनुमति नहीं है।

(8) पैशाच विवाह - नींद में सो रही कन्या या नशे में डूबी हुई कन्या या राह में जाती हुई किसी कन्या का शीलभंग करके किया जाने वाला विवाह पैशाच विवाह की श्रेणी में आता है ।
इस प्रकार का विवाह वर्तमान में कानूनन अपराध है तथा इस प्रकार के किसी भी कृत्य के लिए सजा का प्रावधान किया गया है।
इन सभी प्रकार के विभागों में ब्रह्म, दैव, आर्ष और प्रजापात्य विवाह को सबसे श्रेष्ठ माना गया है।


पति और पत्नी की संख्या के आधार पर विवाह के प्रकार:- 
(1) एकल विवाह - जब स्त्री और पुरुष द्वारा किसी एक स्त्री या पुरुष से विवाह किया जाता है तो इस प्रकार का विवाह एकल विवाह की श्रेणी में आता है।
(2) बहु विवाह - जब किसी स्त्री या पुरुष द्वारा एक से अधिक स्त्रियां पुरुषों से विवाह किया जाता है तो इस प्रकार का विवाह बहुविवाह की श्रेणी में आता है।
बहु विवाह तीन प्रकार के होते हैं

• बहु पत्नी विवाह - जब कोई पुरुष एक से अधिक विवाह करता है तो इस प्रकार का विवाह व पत्नी विवाह कहलाता है।

• बहुपति विवाह - जब कोई स्त्री एक से अधिक विवाह  करती है तो इस प्रकार का विवाह बहुपति विवाह कहलाता है इस प्रकार का विवाह गोंड ,बैगा ,टोडा जनजातियों में पाया जाता है।
 यह दो प्रकार का होता है
(1) भ्रातृविवाह  - कई भाइयों द्वारा मिलकर जब एक स्त्री से विवाह किया जाता है तो इस प्रकार का विवाह भ्रातृविवाह कहलाता है ।
(2)अभ्रातृविवाह - जब किसी स्त्री द्वारा ऐसे पुरुषों से विवाह किया जाता है जिनकी बीच निकट रक्त संबंध नहीं होता तो इस प्रकार का विवाह अभ्रातृविवाह कहलाता है इसमें स्त्री कुछ कुछ दिनों के अंतराल में प्रत्येक पुरुष के साथ जाकर रहती है।

• समूह विवाह - पुरुषों के एक समूह द्वारा जब स्त्रियों के एक समूह से विवाह किया जाता है तथा उस समूह के प्रत्येक पुरुष का संबंध दूसरे समूह के प्रत्येक स्त्री के साथ होता है तो इस प्रकार का विवाह समूह विवाह कहलाता है इस प्रकार के किसी विवाह का प्रमाण प्राचीन काल में नहीं मिलता है।


           मुस्लिम विवाह एवं उसके प्रकार

मुस्लिम विवाह - सातवीं शताब्दी में इस्लाम धर्म का उदय हुआ जिसके संस्थापक पैगंबर मोहम्मद हजरत  थे। वर्तमान में इस्लाम धर्म भारत का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है। इस्लाम धर्म में विवाह के लिए निकाह शब्द का प्रयोग किया जाता है।
D.f. मुल्ला के अनुसार - " निकाह एक शिष्ट समझौता है जिसका उद्देश्य संतान उत्पन्न करना एवं उन को वैध घोषित करना है।"
मुस्लिम विवाह के प्रकार - मुस्लिमों में 4 प्रकार के विवाह होते हैं-
 (1)वैध विवाह (2)मुताह (3)फासिल और (4)बातिल विवाह 
(1) वैध विवाह - यह विवाह का सबसे प्रचलित रूप है इस प्रकार का विवाह है स्थायी विवाह होता है। इसमें जब तक किसी एक पक्ष द्वारा तलाक ना दिया जाए तब तक यह वैद्य माना जाता है भारत में अधिकांश मुस्लिम इसी पद्धति से विवाह करते हैं।

(2) मुताह विवाह - इस प्रकार के विवाह में विवाह है अस्थायी होता है अर्थात एक निश्चित समय के लिए किया जाता है। इस विवाह द्वारा उत्पन्न संतान को वैध माना जाता है तथा उसका पिता की संपत्ति पर अधिकार होता है।


             ईसाई विवाह एवं उसके प्रकार

ईसाई विवाह - क्रिश्चियन बुलेटिन के अनुसार "विवाह समाज में एक पुरुष तथा एक स्त्री के बीच एक समझौता है जो साधारण तय है संपूर्ण जीवन भर के लिए होता है और इसका उद्देश्य परिवार की स्थापना है।"
ईसाई विवाह के प्रकार - ईसाइयों में दो प्रकार के विवाह का प्रचलन है :-
(1) धार्मिक विवाह - इस प्रकार का विवाह गिरजाघरों में पादरियों  के द्वारा  संपन्न कराया जाता है। वर (groom) और  वधू (bride) एक दूसरे को अंगूठी पहनाकर विवाह की रस्म पूरी करते हैं । ईसाइयों में अधिकांश विवाह इसी विधि द्वारा किए जाते हैं।
(2) सिविल मैरिज - विवाह की इस पद्धति में वर और वधू मैरिज रजिस्ट्रार के ऑफिस में जाकर विवाह करते हैं। विवाह के इस प्रकार में कुछ गवाहों की आवश्यकता होती है।


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