चंगेज खान का इतिहास।।मध्यकालीन इतिहास का एक क्रूरतम शासक।। changej khan # upsc

चंगेज खान चीन के दक्षिण में स्थित मंगोलिया नामक एक देश से संबंधित था चंगेज खान का वास्तविक नाम तेमुजिन था। यहां हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि चंगेज खान मुस्लिम नहीं था ।क्षेत्रीय भाषा के प्रभाव के कारण उसे चंगेज खान कहां जाने लगा।

चंगेज खान एक बहुत ही क्रूर शासक था वह मंगोलिया की यायावर जनजाति से संबंधित है यायावर जनजाति एक घुमक्कड़ जनजाति होती है। जो भेड़ बकरियों का पालन करती है चंगेज खान का एक जनजातीय से उभर कर इतना बड़ा शासक बनना उसके लिए एक विशेष प्रसिद्ध थी उसने यह प्रसिद्धि अपने क्रूर व्यवहार के कारण ही प्राप्त की थी ।
चंगेज खान स्वयं को खुदा का कहर कहता था चंगेज खान द्वारा निर्मित मंगोल सैनिकों में भी उसी की तरह क्रूरता व्याप्त थी।
मंगोलों ने अधिकांश युद्धों में जानबूझकर आतंक का उपयोग किया क्योंकि वह चाहते थे कि लोगों में हारने के बाद उनका भय बन जाए और साथ ही अन्य शासक भी इसी भय के कारण उस से युद्ध करने से पहले ही हार मानलें।
मंगोल सैनिकों द्वारा किसी भी राज्य के शासक को युद्ध में हराने के बाद उनकी प्रजा के साथ बहुत ही अनैतिक व्यवहार किया जाता था सभी सैनिकों का बेरहमी के साथ कत्ल कर दिया जाता था और उनकी स्त्रियों और बच्चों को गुलाम बनाकर नीलाम कर दिया जाता था।

( प्राचीन भारत में विशेषकर मध्यकालीन भारत में गुलामों के बाजारों का उल्लेख मिलता है जहां स्त्रियों और बच्चों और पुरुषों को भी गुलाम के रूप में बेचा जाता था स्त्रियों को दासी के तौर पर और दैहिक सुख की प्राप्ति हेतु खरीदा जाता था वही पुरुषों पुरुषों को युद्ध तथा घरेलू कामकाज में उपयोग किया जाता था तुगलक वंश फिरोज शाह के शासन काल में 1,80,000 गुलामों का उल्लेख मिलता है)

प्रजा के किसी भी व्यक्ति को छोड़ा नहीं जाता था बच्चे बड़े, बूढ़े ,स्त्रियां सभी इनकी क्रूरता का शिकार हुआ करते थे । मंगोलों के हाथों मारे जाने से बेहतर लोग स्वयं मरना पसंद करते थे स्त्रियां भी अपनी रक्षा हेतु जौहर का मार्ग अपना लेती थीं।
   यहां यह उल्लेखनीय है कि मंगोलों द्वारा यह व्यवहार केवल हिंदू धर्म य किसी विशेष धर्म के लिए नहीं
अपनाया जाता था बल्कि वे जिस भी राज्य पर आक्रमण करती वहां की प्रजा किसी भी जाति की हो वह उनके साथ ऐसा ही व्यवहार करते थे।
चंगेज खान से भारत के लिए खतरा मुख्यतः 1221 में उत्पन्न हुआ जब ख्वरिज्मी शासक को चंगेज खान द्वारा पराजित किया गया और वहां का युवराज जलालुद्दीन भाग कर भारत आ गया। उसने दिल्ली के सुल्तान से सहायता मांगी किंतु सुल्तान में सहायता करने से इंकार कर दिया उस समय इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत का सुल्तान था वह चंगेज खान से भलीभांति परिचित था ।
वह किसी भी प्रकार का खतरा मोल नहीं लेना चाहता था क्योंकि दिल्ली सल्तनत अभी इतनी स्थायी अवस्था में नहीं थी कि वह इतने शक्तिशाली शासक से युद्ध कर सके । 1206 ईस्वी में ही दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई थी और इल्तुतमिश  1211 ईसवी में दिल्ली का सुल्तान बना था।
1227 ईस्वी में चंगेज खान की मृत्यु हो गई और उसका साम्राज्य उसके बेटों में बट गया अब यह साम्राज्य इतना शक्तिशाली नहीं रह गया जितना कि चंगेज खान के शासनकाल में था।

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